पृथ्वी कहे इंसान से,”मैं न कोई ईश्वर हूं न,कोई संत,
बस !अब मत देखो मेरे सहन शक्ति का अंत।
माना के तुम मेरे ही अंश हो,मेरे जिगर का टुकड़ा हो,
लेकिन अर्थ नहीं इसका कि तुम तहस नहस करोगे मुझे
तो मैं, सजा भी न दूं तुझे?
आशीर्वाद दिया है मैंने तुम्हें, दूधो नहाओ पूतों फलों ….
इसका हरगिज़ मतलब नहीं कि तुम मेरी अस्मिता से खेलो।
माफ़ करूंगी ज़रूर तुम्हें अनजाने में जब तुमसे गलती हो,
लेकिन बारंबार हो, तो गांठ बांध लेना,
की मुझे आता नहीं गुनाहों को माफ करना।
पूरे अंबर को हिलाऊंगी बिजलियां गिराऊंगी ,
मैं रुद्र या काली बन तांडव करूंगी,
मेरे ही जन्मे का मैं विध्वंस करूंगी।
सो,जाग जा मेरे मानव पुत्र, समय अभी गया नहीं
तुम्हारी वसुंधरा माता का अंत अभी हुआ नहीं।
प्रांजली चौधरी
गोवा