(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
दिल्ली में जीते जी मार दिया सुहाग:पति को कागज में मृत दिखाकर 60 हजार महिलाऐं ले रही थी विधवा पेंशन!
“जिंदा पति, विधवा बीवी और सरकार से पेंशन ये कैसा दिल्लगी वाला खेल चल रहा है दिल्ली में ?
(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
नई दिल्ली।देश की राजधानी दिल्ली में सरकारी सिस्टम को ‘मात’ देने का जो खेल चला, उसकी पटकथा बॉलीवुड भी नहीं लिख सकता। सोचिए, पति घर में दाल-रोटी खा रहा है और बीवी सरकार से ‘विधवा पेंशन’ चबा रही है! हाल ही में किए गए एक सरकारी सर्वे में इस तरह की 60,000 मामले सामने आईं, जिन्होंने महिला कल्याण योजना को हिला कर रख दिया।

दिल्ली में विधवा पेंशन योजना में हुआ खुलासा सरकार के होश उड़ाने वाला है। एक सरकारी सर्वे ने पर्दा उठाया है उन महिलाओं पर, जो या तो विधवा नहीं हैं या जिनकी ज़िंदगी में ‘विधवा होने’ के बाद फिर से पति की एंट्री हो चुकी है — मगर सरकारी रिकॉर्ड में अब भी ‘बेचारी’ बनी पेंशन ले रहीं हैं। और ये कोई छोटी संख्या नहीं, पूरे 60,000 महिलाएं!
यह मामला महिला एवं बाल विकास विभाग के एक बड़े सर्वे के बाद सामने आया। नवंबर 2024 में पूरे दिल्ली के 11 राजस्व जिलों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर जब सच्चाई की थाली बजाई तो निकली नकली विधवाओं की बारात! कहीं पति जिंदा निकला, तो कहीं विधवा बनकर फिर ब्याही महिलाएं पेंशन का पैसा खा रही थीं।
सरकार की संकटग्रस्त महिला पेंशन योजना, जिसे 2007 में शुरू किया गया था, इसका उद्देश्य था उन महिलाओं को सहारा देना जो या तो विधवा हैं, तलाकशुदा हैं, छोड़ी गई हैं या जिनके पास कोई कमाई का साधन नहीं है। हर महीने 2500 रुपये की आर्थिक सहायता सीधे खाते में दी जाती थी, ताकि वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ी रह सकें। इस योजना में अब तक 3.5 लाख महिलाएं रजिस्टर्ड थीं।
लेकिन जब हकीकत की परतें खुलीं तो चौंका देने वाला सच सामने आया — इनमें से लगभग 60,000 महिलाएं अपात्र थीं। कुछ महिलाएं तो पति के होते हुए भी सरकारी कागजों में खुद को विधवा बताकर वर्षों से हर महीने सरकार से ‘सहानुभूति भत्ता’ ले रही थीं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “कुछ महिलाएं दोबारा शादी कर चुकी थीं, लेकिन उन्होंने पेंशन लेना बंद नहीं किया। हमनें अब ऐसे सभी फर्जी नामों को पेंशन सूची से हटा दिया है।” विभाग अब इस बात पर मंथन कर रहा है कि इन महिलाओं के खिलाफ आगे क्या कार्रवाई की जाए।
डोर-टू-डोर वेरिफिकेशन ने बताया कि पेंशन योजना की शर्तें कितनी लचर थीं और कैसे लोग इसका फायदा उठा रहे थे। पात्रता के अनुसार महिला की सालाना आमदनी 1 लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए और वह दिल्ली की निवासी होनी चाहिए कम से कम पांच वर्षों से। लेकिन जब फील्ड में जांच हुई तो न कोई सत्यापन, न कोई ईमानदारी।
अब सवाल उठता है – इतने सालों तक ये फर्जीवाड़ा कैसे चला? विभागीय तंत्र क्यों सोया रहा? और जो महिलाएं झूठे दस्तावेजों के आधार पर सरकार को चूना लगाती रहीं, क्या वे अब सिर्फ नाम हटाने से ही बच जाएंगी? सरकार को अब यह तय करना होगा कि क्या ये सिर्फ ‘भूल’ है या एक ‘आर्थिक अपराध’।
इस पूरे मामले ने दिल्ली की पेंशन व्यवस्था की पोल खोल दी है। यह खबर न सिर्फ व्यवस्था में भ्रष्टाचार का आईना दिखाती है, बल्कि यह भी बताती है कि समाज में कुछ लोग जरूरतमंदों के अधिकार छीनकर कैसे खुद को सुविधाएं दिलवा लेते हैं।
आखिर में सवाल यह है — सरकार कब जागेगी और झूठ की यह पेंशन कब बंद होगी? क्योंकि ज़रूरतमंद अब भी कतार में हैं, और जिंदा पतियों की ‘विधवाएँ’ अब तक मुस्कुरा रही हैं।