मथुरा कोर्ट में कथावाचक कौशल किशोर ठाकुर पर हमला बना राज्य की राजनीति का ताजा़ तूफान!
(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक ऐसा बवंडर उठ खड़ा हुआ है, जिसने सत्ता के गलियारों से लेकर संत समाज तक को झकझोर दिया है। कथावाचक कौशल किशोर ठाकुर पर मथुरा की अदालत में हुए कथित हमले ने क्षत्रिय समाज को इस कदर आहत किया है कि पूरे प्रदेश में आक्रोश की लहर दौड़ गई है।
गौरतलब है कि यह वही कौशल किशोर ठाकुर हैं, जिन्होंने मथुरा के प्रतिष्ठित आश्रम को कब्जाने के प्रयास में अधिकारी निर्विकार सिंघल की भूमिका पर सवाल उठाए थे और सरकारी कार्य में हस्तक्षेप करने के आरोप में प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना के खिलाफ मथुरा एमपी-एमएलए कोर्ट में मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी।
बीते दिनों जब इस मामले की सुनवाई चल रही थी, तब कोर्ट रूम में अचानक उस वक्त हंगामा मच गया जब मथुरा के शासकीय अधिवक्ता हरेंद्र शर्मा और उनके कथित गुर्गों ने कथावाचक कौशल किशोर ठाकुर पर हमला बोल दिया। अदालत में मौजूद न्यायाधीश के सामने ही यह शर्मनाक दृश्य घटित हुआ, जिसने न केवल कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि सत्ता के दंभ और दबाव की तस्वीर भी उजागर की है।
यह हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे संत समाज और क्षत्रिय स्वाभिमान पर आघात है। इसी कारण अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा समेत कई क्षत्रिय संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि हरेंद्र शर्मा और अन्य दोषियों के खिलाफ शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
कौशल किशोर ठाकुर ने बताया कि इस मामले की शिकायत उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से की थी और मुख्यमंत्री ने उन्हें न्याय का आश्वासन भी दिया था। लेकिन अब ठाकुर का आरोप है कि मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे कुछ अधिकारी जानबूझकर मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखकर सुरेश खन्ना को बचाने की साजिश रच रहे हैं।
ठाकुर ने यह भी कहा कि यह वही लोग हैं जो दिल्ली दरबार के इशारों पर चलते हैं और मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल करने का षड्यंत्र रच रहे हैं। उनका दावा है कि सुरेश खन्ना गृह मंत्री अमित शाह के करीबी हैं और इसी कारण उन्हें बचाने की कवायद हो रही है।
इस घटना ने क्षत्रिय समाज के घावों को और गहरा कर दिया है। पहले ही ठाकुरवाद का आरोप लगाकर मुख्यमंत्री योगी को बदनाम करने का दर्द झेल रहा समाज अब अपने संत पर हुए हमले से क्षुब्ध है। कोर्ट में हुई यह घटना केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं रह गई है, बल्कि यह अब सामाजिक स्वाभिमान और सत्ता के दमन के बीच की लड़ाई बन चुकी है।
मथुरा बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने जबरन कोर्ट रूम में घुसकर सुरेश खन्ना की ओर से वकालतनामा लगाने की कोशिश की, जिसे अदालत ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद ही मारपीट की कोशिश की गई। यह संयोग नहीं बल्कि सत्ता के दबाव का सुनियोजित परिणाम माना जा रहा है।
अब पूरे प्रदेश की निगाहें 6 जून पर टिकी हैं, जब अदालत सुरेश खन्ना पर मुकदमा दर्ज करने के संबंध में अपना फैसला सुनाएगी। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी तय करेगा कि उत्तर प्रदेश में न्याय का तराजू सत्ता के बोझ से दबेगा या सत्य की रक्षा करेगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या लोकतंत्र में साधु-संतों की आवाज भी सत्ता के दबाव में कुचली जा सकती है? और क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ही अधिकारियों की साजिशों से बेखबर रहेंगे या फिर सच्चाई के साथ खड़े होकर न्याय की मिसाल कायम करेंगे?
प्रदेश की सियासत में उठे इस नए तूफान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह है कि आने वाले दिन इस घने कुहासे को साफ कर पाते हैं या नहीं…