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धर्मशास्त्रों की व्याख्या करने का अधिकार न्यायालय को नहीं – शंकराचार्य स्वामीश्री अविमुक्तेश्वरानंद

एडवोकेट रीना एन सिंह के इंप्लीडमेंट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था पुराणों को काल्पनिक

(शीतल निर्भीक ब्यूरो) नई दिल्ली।भगवान श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा विवाद मामला इस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ में चल रहा है इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट श्रीमती रीना एन सिंह ने राधा रानी को पार्टी बनाने के लिए एक इंप्लीमेंट प्रार्थना पत्र न्यायालय के समक्ष लगाया था। सुनवाई कर रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने आवेदन यह कह कर खारिज कर दिया कि पुराण को कानूनी साक्ष्य नहीं माना जा सकता यह सुनी सुनाई बातों पर आधारित है इसी बात को लेकर देश भर के संत समाज में नाराजगी का माहौल है।

इसी मामले पर परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्‌गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज’ 1008′ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश द्वारा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में श्रीकृष्ण व राधाजी को काल्पनिक बताए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि श्रीकृष्ण व राधाजी को काल्पनिक कहना न्यायाधीश महोदय की धार्मिक रीतियों के बारे में अज्ञानता को दर्शाता है।उन्होंने कहा कि हो सकता है न्यायाधीश महोदय को ध्यान में न हो कि भारत में धार्मिक गतिविधियां किस प्रकार अपना कार्य करती हैं। उनको इस बात का तो कम से कम ध्यान रखना चाहिए था कि 9 नवंबर 2019 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने श्रीरामजन्मभूमि का फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि में निर्णय सुनाते समय पक्षकार कौन था। किसके पक्ष में फैसला सुनाया गया। उन्होंने बताया कि रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया गया।त्रिलोकीनाथ के साथ रामलला विराजमान के पक्ष में मुकदमे का फैसला उच्चतम न्यायालय ने सुनाया और फैसला रामलला विराजमान को न्यायिक व्यक्ति मानकर किया गया।

उन्होंने कहा कि इस फैसले के पीछे आधार स्कंध पुराण व अन्य दूसरे हिंदू धार्मिक ग्रंथ हैं अगर इसका भी ध्यान इलाहाबाद के संबद्ध न्यायाधीश महोदय ने रखा होता तो वह इस तरह से अपनी बात नहीं कहते।उन्होंने कहा कि कम से कम उनको इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि ईसवी सन 1980 में सुप्रीम कोर्ट ने श्री कृष्ण सिंह बनाम मथुरा अहीर के मामले में यह बात स्पष्ट रूप से निरुपित करते हुए कहा है कि जब भी न्यायाधीश निर्णय देंगे तो हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों के आधार पर हिन्दुओं के धार्मिक मामलों में उनको निर्णय देना होगा न कि अपनी आधुनिक सोच के अनुसार।

उन्होंने कहा, भारत में यह स्थापित विधि व्यवस्था है, सर्वमान्य विधि व्यवस्था है कि हिन्दुओं के मामले में कोई धार्मिक निर्णय देना होगा तो वह हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों के आधार पर निर्णय देना होगा और अपने देश में यह भी स्थापित सुसंगत और सर्वमान्य विधि व्यवस्था विधि है कि हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों की समीक्षा करने का अधिकार न्यायालयों को नहीं है। ऐसी स्थिति में हम समझते हैं कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा यह जो निर्णय दिया गया है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण व राधा को काल्पनिक कहा गया है।

यह उनके द्वारा जो पूर्ववर्ती विधि-व्यवस्था स्थापित की गई है उसकी अज्ञानता के कारण दिया गया फैसला हम मानते हैं। न्यायाधीश को हिन्दुओं के धर्मशास्त्रों के मामले में कुछ भी कहने के पहले उनके ही न्यायालयों द्वारा स्थापित जो विधि व्यवस्थाएं हैं उनका अध्ययन करना चाहिए और इस तरह से हम सनातनीधर्मी हिन्दुओं के बारे में हमारे पूर्व इतिहास को हमारी धार्मिक मान्यताओं को कल्पना कहकर के सौ करोड़ से ज्यादा सनातनीधर्मियों की भावना को आहत करने से बचना चाहिए।

प्रार्थना पत्र के संदर्भ में रीना एन सिंह ने कई पुराणों का जिक्र किया था इसके अलावा राधा रानी से कृष्ण लला की पहचान है। हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथ पदम् स्कंध ,नारद, ब्रह्मांड, ब्रह्म वैवर्त, मत्स्य, शिव पुराण के साथ-साथ देवी भागवतम में श्री कृष्ण लला संग राधा रानी के वैदिक विवाह एवं आत्मिक प्रेम का जिक्र मिलता है। रीना एन सिंह ने अदालत में इसका साक्ष्य भी प्रस्तुत किया था कि भगवान श्री कृष्ण लाल का विवाह राधा रानी संग ब्रह्मा जी ने कराया था।

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