बनारस समेत पूरे प्रदेश में आज 5 जुलाई को मनाया जाएगा विरोध दिवस
(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
लखनऊ/वाराणसी।उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा बिजली के निजीकरण के पक्ष में दिए गए पूरे पृष्ठ के विज्ञापन ने प्रदेश के बिजली कर्मचारियों, अभियंताओं और जूनियर इंजीनियरों को भड़का दिया है। सरकार द्वारा पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को होने वाले कथित लाभों का दावा करने वाला यह विज्ञापन अब बड़े आंदोलन की वजह बन गया है।
विरोध की कमान विधुत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने संभाल ली है। समिति ने 5 जुलाई को पूरे प्रदेश में ‘विरोध दिवस’ मनाने का ऐलान कर दिया है। बनारस में भी बिजलीकर्मी इस विरोध में पूरी ताकत से शामिल होंगे।
संघर्ष समिति के केंद्रीय पदाधिकारियों ने सरकार द्वारा प्रकाशित “अब हर घर रोशन – उत्तर प्रदेश” शीर्षक वाले विज्ञापन पर कड़ा ऐतराज जताते हुए इसे ‘अंतर्विरोधों से भरा हुआ’ और ‘जनता को भ्रमित करने वाला’ बताया है। समिति का कहना है कि यह विज्ञापन निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की नीयत से जारी किया गया है।
संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि वे अंतिम निर्णय लेने से पहले संघर्ष समिति को अपना पक्ष रखने का अवसर दें। उनका दावा है कि अगर मुख्यमंत्री को पूरी सच्चाई से अवगत कराया जाए, तो वे निजीकरण की इस कथित “लूट योजना” को कभी मंजूरी नहीं देंगे।
समिति का तर्क है कि जब विज्ञापन में खुद सरकारी बिजली व्यवस्था की उल्लेखनीय उपलब्धियों को गिनाया गया है, तो फिर निजीकरण की ज़रूरत क्या है? बिजली के क्षेत्र में हुए सुधार सरकारी कर्मचारियों की मेहनत से संभव हुए हैं, फिर उन्हीं को अस्थिरता की ओर क्यों धकेला जा रहा है?
उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई है कि जिस पॉवर कॉरपोरेशन प्रबंधन की विश्वसनीयता पर खुद सरकार सवाल खड़ी कर रही है, उसी से निजीकरण की पूरी प्रक्रिया संचालित कराई जा रही है। यह प्रक्रिया पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों का मज़ाक है।
संघर्ष समिति का आरोप है कि 42 जनपदों की लाखों करोड़ की सार्वजनिक संपत्तियों को निजी हाथों में कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है। इस पूरी योजना के पीछे कुछ शीर्ष अफसरों की निजी कंपनियों से मिलीभगत की आशंका जताई गई है, जो मुख्यमंत्री की “भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस” नीति की खुली अवहेलना है।
5 जुलाई को विरोध दिवस के दौरान प्रदेश के सभी जिलों और बिजली परियोजनाओं में धरना-प्रदर्शन और विरोध सभाएं आयोजित की जाएंगी। इसमें सभी बिजलीकर्मी शामिल होंगे और आम जनता, खासकर घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों को भी आमंत्रित किया जाएगा ताकि उन्हें निजीकरण के असल नुकसान समझाए जा सकें।
संघर्ष समिति ने यह भी बताया कि विरोध सभाओं में बड़ी संख्या में ऐसे बिजली कर्मचारियों की सूची तैयार की गई है, जो भविष्य में जेल भरो आंदोलन में भाग लेने के लिए स्वेच्छा से तैयार हैं। यह आंदोलन अब केवल कर्मचारियों का नहीं, बल्कि आम जनता के अधिकारों और संसाधनों की रक्षा का भी बन गया है।
बिजलीकर्मी अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। उनकी मांग है कि सरकारी बिजली व्यवस्था को बचाया जाए, निजी कंपनियों को दूर रखा जाए और बिजली जैसे मूलभूत सेवा क्षेत्र को मुनाफे का सौदा न बनाया जाए।