(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
बलिया। हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर रसड़ा में प्रगतिशील ग्रामीण पत्रकार संगठन की ओर से 30 मई को एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम तहसील अध्यक्ष मतलूब मोहम्मद के प्रतिष्ठान पर संपन्न हुआ। गोष्ठी में क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व बुद्धिजीवियों ने भाग लिया और हिंदी पत्रकारिता की वर्तमान दशा-दिशा पर गंभीर चर्चा की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मतलूब मोहम्मद ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी पत्रकारिता आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है। जिस तरह से इसका स्तर नीचे गिर रहा है, वह चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का मूल धर्म है – निष्पक्षता, सत्य और जनहित। इसे जीवित रखना हम सभी पत्रकारों की जिम्मेदारी है। मतलूब ने यह भी जोड़ा कि पत्रकारों को संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए एकजुट होना चाहिए।

इस अवसर पर नगरा से आए वरिष्ठ पत्रकार हरेंद्र वर्मा ने कहा कि पत्रकारिता के क्षेत्र में अब कुछ ऐसे लोग प्रवेश कर गए हैं जो केवल स्वार्थ साधने के लिए पत्रकार बने हैं। ऐसे लोगों को अलग करना ही पत्रकारिता की पवित्रता बनाए रखने का एकमात्र उपाय है।
वहीं ओमप्रकाश वर्मा ने कहा कि ग्रामीण पत्रकारों ने अपनी मेहनत और लेखनी के दम पर आज अपनी अलग पहचान बनाई है। गांव-कस्बों में पत्रकार अब सिर्फ खबरों तक सीमित नहीं हैं, वे सामाजिक चेतना का माध्यम भी बन चुके हैं।
श्यामकृष्ण गोयल ने कहा कि आज के दौर में जब डिजिटल मीडिया और टीआरपी की होड़ ने पत्रकारिता की दिशा बदल दी है, तब हमें गुणवत्ता और ईमानदारी से समझौता नहीं करना चाहिए।
पत्रकार विकास वर्मा ने कहा कि अब समय आ गया है कि पत्रकारों को संगठित होना चाहिए। जब तक हम बिखरे रहेंगे, तब तक हमारी आवाज दबाई जाती रहेगी। हमें अपने हक और सम्मान की लड़ाई मिलकर लड़नी होगी।
कार्यक्रम में गोपाल जी गुप्ता, कृष्णा शर्मा, गोपाल जी, हरेंद्र वर्मा, ज़फर आलम, सीताराम शर्मा, भगवान पाण्डेय जैसे अनुभवी पत्रकारों की उपस्थिति ने माहौल को गंभीर और सार्थक बना दिया। सभी ने एक स्वर में यह माना कि पत्रकारिता को स्वच्छ, निर्भीक और जनसरोकारों से जुड़ा बनाए रखना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
कार्यक्रम का समापन करते हुए शिवाजी बागले ने सभी आगंतुकों और वक्ताओं का आभार जताया और आशा जताई कि इस तरह की गोष्ठियों से पत्रकारों में चेतना और आत्मबल का विकास होता रहेगा।
हिंदी पत्रकारिता दिवस की इस गोष्ठी में सिर्फ भाषण नहीं हुए, बल्कि पत्रकारिता के भविष्य को लेकर चिंतन, मंथन और एकजुटता की भावना भी उभरी। रसड़ा जैसे कस्बे से निकली यह आवाज कहीं न कहीं हिंदी पत्रकारिता को उसकी जड़ों से जोड़ने का काम करेगी – ऐसी उम्मीद की गई।