नवरात्रि व्रत-पूजन का शुभ विधान:
सही तिथि पारण समय बताकर भक्तों की शंका दूर की ज्योतिषाचार्य वैभव शुक्ला
(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
वाराणसी। नवरात्रि का पर्व आते ही गाँव-गाँव और शहर-शहर में भक्ति का अद्भुत माहौल बन जाता है। माँ दुर्गा की आराधना में लीन भक्त व्रत, पूजन और हवन करके देवी को प्रसन्न करने में जुट जाते हैं। लेकिन अक्सर भक्तों को पारण और तिथि को लेकर उलझन रहती है। इस बार भक्तों के इस संशय को दूर करते हुए ज्योतिषाचार्य वैभव शुक्ला ने बेहद सरल और स्पष्ट शब्दों में सही तिथि व विधान बताकर सबकी चिंताओं का समाधान किया है।

उन्होंने बताया कि चढ़ती और उतरती नवरात्रि में जो भाई-बहन व्रत रखते हैं, उनके लिए इस बार 30 तारीख को व्रत रखना अनिवार्य है। 30 तारीख की दोपहर 2 बजे के बाद नवमी तिथि का प्रारंभ होगा, जो 1 तारीख की दोपहर 2 बजे तक चलेगी। इसी अवधि में हवन करने से भक्तों को पूर्ण फल की प्राप्ति होगी।
वैभव शुक्ला ने कहा कि नवमी के चतुर्थ चरण में पारण करने वाले लोग 1 तारीख की सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर 2 बजे तक के बीच ही पारण करें। वहीं, जो भक्त दशमी तिथि में पारण करने की परंपरा निभाते हैं, वे 1 तारीख को दोपहर 2 बजे के बाद पारण करें। इस प्रकार सभी साधक अपनी परंपरा और आस्था के अनुसार सही समय पर पारण कर सकते हैं।
उन्होंने श्रद्धालुओं को यह भी समझाया कि नवरात्रि के व्रत और पूजन का असली सार विधि-विधान का सही पालन करने में है। यदि भक्त तय तिथि और मुहूर्त में हवन और पारण करते हैं, तो माँ दुर्गा की कृपा सहज रूप से प्राप्त होती है। उन्होंने चेताया कि गलत समय पर पारण या हवन करने से साधक की साधना अधूरी रह जाती है और अपेक्षित फल नहीं मिलता।
नवरात्रि व्रत केवल उपवास का नाम नहीं, बल्कि यह आत्मसंयम और आस्था की परीक्षा है। नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना से भक्त अपने जीवन की कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति पाते हैं। यही कारण है कि भक्तजन नियम और मर्यादा के साथ व्रत-पूजन करते हैं।
मंदिरों और घरों में सुबह-शाम देवी के भजन, आरती और मंत्रोच्चार से वातावरण पवित्र हो उठता है। कहीं ढोल-नगाड़ों की गूंज, कहीं घंटियों की ध्वनि और कहीं भक्तों के स्वर मिलकर माँ दुर्गा की महिमा गाते हैं। यह भक्ति और विश्वास ही नवरात्रि को अद्वितीय बनाता है।
ज्योतिषाचार्य वैभव शुक्ला ने भक्तों से अपील की है कि वे अफवाहों और भ्रम से बचकर सटीक पंचांग और योग्य आचार्यों की राय के अनुसार ही धार्मिक अनुष्ठान करें। उनका कहना है कि माँ दुर्गा सच्चे भाव से किए गए पूजन और व्रत को अवश्य स्वीकार करती हैं।
भक्तों के हृदय में आशा और विश्वास का दीप जलाते हुए उन्होंने कहा—“माँ दुर्गा की आराधना से बड़ा कोई साधन नहीं, और उनकी कृपा से बड़ा कोई वरदान नहीं।”













