बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेती दिख रही है। 2025 विधानसभा चुनाव को लेकर जहां सभी दल अपनी रणनीति बना रहे हैं, वहीं महागठबंधन की एकता पर सवाल खड़े हो गए हैं। राजद (RJD) और कांग्रेस के बीच लगातार बढ़ती दूरी और भरोसे की कमी से यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह गठबंधन अगले चुनाव तक टिक पाएगा?
🤝 भरोसे में आई दरार
महागठबंधन की सबसे बड़ी दो साझेदार पार्टियां—राजद और कांग्रेस—आज आपस में ही शक के दायरे में हैं। खासकर तब जब राहुल गांधी की न्याय यात्रा बिहार में आई और तेजस्वी यादव नदारद रहे। इसी तरह, कांग्रेस के कई कार्यक्रमों में राजद नेताओं की उपस्थिति न के बराबर रही। इससे यह साफ है कि दोनों दलों के बीच संवाद की कमी है।
⚖️ चुनाव बहिष्कार पर मतभेद
हाल ही में हुए कुछ उपचुनावों में कांग्रेस ने अलग राह पकड़ी और महागठबंधन के फैसलों से अलग चुनावी रणनीति बनाई। राजद ने इसे “गठबंधन के खिलाफ कदम” बताया। कांग्रेस द्वारा कुछ सीटों पर प्रत्याशी ना उतारना या प्रचार ना करना राजद के नेताओं को अखर गया।
🔥 जातीय राजनीति का टकराव
राजद का हमेशा से जातीय समीकरणों पर फोकस रहा है, खासकर यादव-मुस्लिम समीकरण पर। वहीं कांग्रेस चाहती है कि विकास और मुद्दों पर आधारित राजनीति हो। इसी वजह से जातीय जनगणना, अगड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व और महिला आरक्षण जैसे मुद्दों पर भी दोनों दलों के बयान मेल नहीं खाते।
सीट शेयरिंग बना विवाद की जड़
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थीं, लेकिन पार्टी ने महज़ 19 पर जीत हासिल की। इससे राजद को यह लगा कि कांग्रेस “भार” बन रही है। इस बार सीटों की संख्या घटाने की बात पर कांग्रेस नाराज़ है और यह मामला अभी सुलझा नहीं है।
📣 विपक्षी एकता पर भी असर
INDIA गठबंधन की बात हो या लोकसभा के नतीजे—बिहार में कांग्रेस और राजद की दूरी से पूरा विपक्षी मोर्चा कमजोर दिखने लगा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर यही स्थिति रही तो बीजेपी और जेडीयू को इसका सीधा फायदा मिल सकता है।
निष्कर्ष:
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही महागठबंधन दरकता नजर आ रहा है। जहां एक ओर मतभेद, ईगो और सीटों की खींचतान है, वहीं दूसरी ओर जनता उम्मीद कर रही है कि विपक्ष मजबूत विकल्प बने। अब देखना होगा कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव इस गठबंधन को बचा पाते हैं या बिहार की राजनीति एक बार फिर नई दिशा में मुड़ती है।