(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
वाराणसी, 29 मई 2025: भारतीय रेलवे के प्रति विश्वास और भरोसा तब और गहराता है जब उसकी सेवाएं यात्रियों की ज़रूरत पर पलक झपकते हाज़िर हो जाती हैं। ऐसा ही एक मानवीय उदाहरण पूर्वोत्तर रेलवे के वाराणसी मंडल ने 29 मई की सुबह पेश किया, जिसने यह साबित कर दिया कि रेल सिर्फ सफर का जरिया नहीं, बल्कि मुसाफिरों की चिंता में हमेशा शामिल एक संवेदनशील साथी भी है।
सुबह ठीक 06:52 बजे, नई दिल्ली से न्यू जलपाईगुड़ी जा रही गाड़ी संख्या 12524 में सफर कर रही महिला यात्री अंजू देवी ने अपने छोटे बच्चे को दूध पिलाने की आवश्यकता महसूस की। वातानुकूलित प्रथम श्रेणी के A1 कोच की बर्थ संख्या 33 पर बैठी अंजू देवी ने झिझकते हुए ‘रेल मदद’ ऐप के माध्यम से रेलवे से गर्म दूध की मांग की। यह सामान्य सी मांग एक मां की ममता और रेलवे की तत्परता के बीच एक खूबसूरत संवाद बन गई।
गाड़ी में पैंट्री कार न होने के कारण मामला वाराणसी मंडल के कमर्शियल कंट्रोल तक पहुँचा, जहां ड्यूटी पर मौजूद अनिल यादव ने फौरन इसे सीवान स्टेशन के मंडल वाणिज्य अधीक्षक प्रणव प्रभाकर तक पहुंचाया। जैसे ही सूचना मिली, प्रणव प्रभाकर ने बिना देर किए सीवान स्टेशन पर तैनात टिकट निरीक्षक निशा कुमारी को निर्देश दिया कि गाड़ी के स्टेशन पर रुकने से पहले गर्म दूध की व्यवस्था कर ली जाए।
रेलवे की इस फुर्ती और मानवीयता का नतीजा यह हुआ कि जब गाड़ी सीवान स्टेशन पर पहुँची, तब निशा कुमारी गर्म दूध लेकर महिला यात्री अंजू देवी की बर्थ तक पहुँचीं और उन्हें राहत प्रदान की। यह दृश्य यात्रियों में एक अलग ही भरोसा पैदा कर गया।
महिला यात्री अंजू देवी ने रेलवे की इस तत्परता पर आभार व्यक्त करते हुए कहा, “मैंने बस एक उम्मीद के साथ रेल मदद ऐप का सहारा लिया था, लेकिन मुझे नहीं लगा था कि इतनी जल्दी मेरी बात सुनी जाएगी। रेलवे ने सिर्फ मेरी मदद नहीं की, मेरे बच्चे की भूख और मेरी चिंता दोनों को शांत किया। इसके लिए मैं दिल से धन्यवाद देती हूं।
“रेलवे की इस सेवा भावना की जानकारी जनसंपर्क अधिकारी अशोक कुमार ने मीडिया को दी। उन्होंने बताया कि मंडल रेल प्रबंधक विनीत कुमार श्रीवास्तव के नेतृत्व में वाराणसी मंडल यात्रियों की जरूरतों को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक शेख रहमान के निर्देशन में ‘रेल मदद’ ऐप, हेल्पलाइन नंबर 139, एसएमएस और वेबसाइट के माध्यम से प्राप्त शिकायतों का समय से निस्तारण सुनिश्चित किया जाता है।
रेलवे की यह पहल न सिर्फ तकनीक के कुशल उपयोग की मिसाल है, बल्कि एक मानवीय संवेदना का जीता-जागता प्रमाण भी है। यह घटना यह भी दर्शाती है कि भारतीय रेल सिर्फ स्टेशनों और ट्रेनों का जाल नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने में यात्रियों के सुख-दुख में भागीदार है।
अंजू देवी और उनके जैसे अनगिनत यात्रियों के चेहरे पर मुस्कान लाना ही शायद भारतीय रेल की असली उपलब्धि है।