अनु को पिछले चार साल से भरणपोषण भत्ता मिल रहा था।मगर पिछले छ. माह से अमित ने भत्ता देना बँद कर दिया।कल ही अनु को मौबाईल पर मेसेज आया कि अमित को कैंसर हो चुका है और बिमारी रिकवर होने की बजाय बढती जा रही है अतः वह भरणपोषण भत्ता देने मे असमर्थ है।यह मेसेज अनु को कोर्ट द्वारा मिला जिसे अमित ने अपनी बिमारी को कारण बताया।
अनु कल से मेसेज को चार पांच बार पढ चुकी थी और हर बार वह बेचैन हो रही थी।और वह सात साल पूर्व की यादो मे खो गई।वकील अँकल ने लिखवाया कि अमित शराब पीकर मारपीट करता है ,जिसे अमित साबित नहीं कर पाया कि वह मारपीट नहीं करता तथा शराब नहीं पीता।यह मौखिक आरोप ही सेक्शन तेरह के अँतर्गत दहेज व घरेलु हिँसा को आधार मानकर वह अलग रहने लगी तथा भरणपोषण की हकदार बन गई।साथ ही बहिन और मम्मी के उकसावे मे आकर अनु ने यह भी आरोप लगाया कि अमित उस पर शक करता है।
अनु को अमित के साथ बिताये सुखद पल भी याद आने लगे शादी बाद जब वे उतराखंड घूमने गए प्रकृति के शाँत उँचे पर्वत,दिनभर मनवांछित हवा मे दोनों हाथो मे हाथ लिए पार्क, सडक पर चहलकदमी कर रहे थे।
कुछ समय बाद ही उनके पारिवारिक जीवन मे खटास होने लगी और बात कोर्ट कचहरी तक पहुंच गई।आज अनु को अहसास हो रहा था कि मम्मी पापा के कहने से अमित को सबक सिखाना आत्मघाती लग रहा था।पिछले तीन चार दिन से वह अत्यधिक व्याकुल होने लगी।अमित से मिलने और क्षमा माँग कर वह उसकी बीमारी मे मदद करना चाहती थी।उसने वकील को फोन लगाया और उनके आफिस पहुंच गई।थोड़ी बातचीत के बाद उसने कहा अँकल मै अब भत्ता नहीं चाहती उनसे मिलकर उनकी सेवा करना चाहती हूँ।उसने आफिस से ही फोन लगाया अमित ने फोन नहीं उठाया।कुछ समय बाद अमित का फोन आया. हाँ अनु कम्पौडर साहब घाव की डेर्सिग कर रहे थे,इसलिए फोन नहीं उठाया।बात खत्म होते ही अनु रुहाँसी हो उठी, “अमित मुझे माफ कर दो। मै तुमसे मिलना चाहती हूँ।”अमित कहारता हुआ इतना ही कह पाया, हाँ मिल सकती हो जिस कन्धे पर तुम सिर रख कर उतराखंड मे मेरे साथ घूम रही थी,उसी कन्धे को बोन कैंसर हो गया।अब समय कम है तुम आ सकती हो।
अगले दिन अनु मम्मी की कहासुनी के बाद वह घर से निकलने वाली थी कि उसकी रिश्तेदार सहेली का फोन आया अमित नहीं रहा……।
पैँटर लाल चँद तुनगरिया
9252221202
9/7/25
शपथपत्र..
प्रस्तुत कहानी बोन कैंसर मेरी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना है।इसे मै भारत टाइम्स मे प्रकाशनार्थ हेतु प्रेषित कर रहा हुँ।