गीता देवी की दर्दभरी दास्तान!
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की खुखुंदु थाना क्षेत्र में इंसाफ की उम्मीद लिए कम्हरिया गांव की गीता देवी आज भी अपने पुराने टूटे घर की चारपाई पर बैठकर उस सुबह को याद करती हैं, जब उसकी जान उसके अपने ही लेने पर उतारू हो गए थे। गीता देवी की शादी करीब 30 वर्ष पहले हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार ब्रह्मानंद पुत्र रामछबीला से हुई थी। तीन बेटों के जन्म के बाद जब गृहस्थी संवरने लगी थी, तभी पति की नियत बिगड़ गई और उसने दूसरी औरत को रख लिया। बाद में उससे शादी कर ली और दो बच्चे भी पैदा कर लिए।
इससे गीता देवी का जीवन नरक बन गया। न ससुराल वालों ने साथ दिया, न पति ने। मजबूर होकर गीता देवी ने भरण-पोषण का मुकदमा दायर किया, जिसमें करीब 4.5 लाख रुपये बकाया है। पति और उसके परिवार ने शपथ पत्र में 30 कठ्ठा जमीन देने की बात कही थी, लेकिन अब उस जमीन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
इन्हीं विवादों के बीच 14 मई 2025 को सुबह 6 बजे गीता देवी जब अपने पुराने घर के कमरे में सो रही थी, तभी पति ब्रह्मानंद, बेटा विवेक उर्फ गोलू, बेटी खुशबू, पत्नी सीमा, देवर भगवान, भगवान का बेटा अभय उर्फ जीत और भगवान की पत्नी बिंदू सभी ने मिलकर एक राय बनाकर गीता देवी पर हमला कर दिया। चारपाई पर गला दबाकर उसे मारने की कोशिश की गई। गीता देवी किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भागी।
सबसे हैरानी की बात ये है कि गांव के लोग सब कुछ जानते हुए भी चुप हैं। न कोई बचाने आया, न आज तक किसी ने गवाही देने की हिम्मत दिखाई। गीता देवी ने थाना खुखुन्दू में एफआईआर दर्ज कराने की गुहार लगाई है, लेकिन पुलिस अब तक चुप्पी साधे बैठी है।
पीड़िता का आरोप है कि पुलिस की निष्क्रियता ने आरोपियों के हौसले बुलंद कर दिए हैं। वह आज भी जान के खतरे के साए में जी रही है। इंसाफ की यह लड़ाई उसके लिए अब जिंदगी और मौत का सवाल बन गई है। सवाल यह है कि क्या कानून सिर्फ रसूखदारों के लिए है? क्या एक बेसहारा महिला की पुकार यूं ही अनसुनी होती रहेगी?
गीता देवी की यह मार्मिक कहानी न केवल न्याय प्रणाली की कमजोरी उजागर करती है, बल्कि समाज की उस चुप्पी को भी बेनकाब करती है, जो एक औरत की चीख को भी दबा देती है।