भारत के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिदृश्य में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो एक युग की परिभाषा बन जाते हैं। ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी ऐसे ही एक युगद्रष्टा थे, जिन्होंने धर्म, राजनीति और सामाजिक चेतना को एक सूत्र में पिरोते हुए दलित समुदाय को नया आत्मविश्वास, पहचान और सम्मान दिया। वे केवल गोरखनाथ मठ के पीठाधीश्वर या योगी आदित्यनाथ के गुरु नहीं थे, बल्कि वे उस सोच के प्रतीक थे जो हिंदू समाज को संकीर्ण जातीय दायरों से निकालकर एक समरस और सर्वसमावेशी मार्ग पर ले जाना चाहती थी।
महंत अवैद्यनाथ जी की राजनीतिक दृष्टि का प्रमाण उस समय मिला जब उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को केवल धार्मिक मुद्दा न मानकर सामाजिक समरसता का आंदोलन बना दिया। उन्होंने यह प्रस्ताव रखा कि श्रीराम मंदिर की नींव की पहली ईंट किसी दलित के हाथों रखी जाए — और ऐसा ही हुआ। 1989 में एक दलित भाई द्वारा अयोध्या में शिलान्यास हुआ और यह स्पष्ट संदेश गया कि राम सबके हैं, राम का धर्म सबको अपनाता है।

1980 के दशक में जब तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ, तो महंत जी ने इसे राष्ट्रांतरण करार दिया और आत्ममंथन का आह्वान किया। उन्होंने पूछा, “क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम अपने ही भाइयों को इतनी गरिमा दें कि उन्हें धर्म बदलने की नौबत ही न आए?” इसी भावना से उन्होंने गांव-गांव जाकर सामाजिक समरसता अभियान चलाया और हिंदू समाज को भीतर से जोड़ने का कार्य शुरू किया।
महंत जी के क्रांतिकारी निर्णयों में से एक था 1994 में डोम राजा के घर प्रमुख धर्माचार्यों संग भोजन करना — एक ऐसा कदम जिसने सदियों से हाशिए पर पड़े समुदाय को मुख्यधारा में लाकर खड़ा किया। यही नहीं, उन्होंने पटना के प्रसिद्ध महावीर मंदिर में एक दलित युवक को पुजारी नियुक्त कर यह साबित कर दिया कि पूजा का अधिकार केवल ऊंची जातियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज का साझा अधिकार है।

आज जब भारत की सर्वोच्च संवैधानिक कुर्सियों पर दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि बैठे हैं — आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, ओबीसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पिछड़ा वर्ग से मुख्य न्यायाधीश — तो यह पहचानना आवश्यक है कि इस समावेशी चेतना की नींव दशकों पहले महंत अवैद्यनाथ जैसे संतों ने रखी थी।
उनकी इसी विरासत को आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूरी निष्ठा और शक्ति से आगे बढ़ा रहे हैं। वे न केवल एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं, बल्कि दलितों के अधिकारों के सशक्त रक्षक के रूप में भी उभरे हैं। उनके शासन में दलितों को सामाजिक सुरक्षा, न्यायिक संरक्षण, आर्थिक अवसर और धार्मिक सम्मान मिला है। गोरखनाथ मठ आज भी हर जाति, वर्ग और संप्रदाय के लिए आश्रय और आत्मबल का केंद्र बना हुआ है।
28 मई, महंत अवैद्यनाथ जी की जयंती, केवल एक संत की स्मृति नहीं, बल्कि उस विचारधारा की पुनः पुष्टि है जो जातिवाद के अंधकार को चीरकर समरसता, समता और सेवा के प्रकाश की ओर हमें ले जाती है। योगी आदित्यनाथ आज उस ज्योति के वाहक हैं, और उनकी अगुवाई में दलित समाज आत्मगौरव, सुरक्षा और प्रगति की ओर अग्रसर है। यही महंत अवैद्यनाथ जी की सबसे महान विरासत है — एक ऐसा हिंदू समाज जो समावेशी है, और एक ऐसा भारत जो सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास का साक्षात रूप है।
✍️(लेखिका) ✍️रीना एन सिंह- वरिष्ठ अधिवक्तासुप्रीम कोर्ट- दिल्ली